bheetar aur bahar

क्या आप जानते हैं कि दुनिया कितनी बड़ी है?

यह सवाल सुनते ही मन आकाशगंगाओं, तारों और पूरे ब्रह्मांड की ओर दौड़ जाता है। लेकिन क्या सिर्फ बाहरी विस्तार ही “बड़प्पन” है, या हमारी छोटी-सी लगने वाली ज़िंदगी और उसकी समस्याएँ भी उतनी ही भारी हो सकती हैं?

बाहरी दुनिया की विशालता
पृथ्वी का व्यास लगभग 12,742 किलोमीटर है, फिर भी ब्रह्मांड के पैमाने पर यह धूल के एक कण से भी छोटी है। हमारी आकाशगंगा लगभग 1 लाख प्रकाश-वर्ष चौड़ी मानी जाती है और इसमें सैकड़ों अरब तारे हैं, और ऐसी असंख्य आकाशगंगाएँ पूरे ब्रह्मांड में फैली हैं। इस अनंत फैलाव के सामने हमारा अस्तित्व, हमारा शरीर और हमारा अहंकार एक कण से भी करोड़ों गुना छोटा पड़ जाता है।

बाहरी दुनिया https://hindi.news18.com/news/ajab-gajab/how-big-is-universe-where-is-the-start-and-end-of-universe-how-much-humans-know-about-universe-ajab-gajab-knowledge-7852613.html

आंतरिक दुनिया का आकार
एक आम इंसान पूरी ज़िंदगी में मुश्किल से 100–1000 लोगों को ही सच में गहराई से जान पाता है; वही उसका असली संसार बन जाता है। इसी सीमित दायरे में ही उसका सुख, दुख, उम्मीदें और डर सब समा जाते हैं। जब कोई समस्या आती है तो यही छोटी-सी दुनिया अचानक बहुत भारी लगने लगती है, और कभी-कभी व्यक्ति को लगता है कि उसकी समस्या इतनी बड़ी है कि ईश्वर भी शायद उसे हल नहीं कर पाएँगे।

(जैसे: नौकरी का स्ट्रेस, रिश्तों की समस्या)

अध्यात्म और विज्ञान का संगम
हमारे ऋषि-मुनियों ने जिस चेतना, प्रार्थना और ध्यान की बात हज़ारों साल पहले की, आधुनिक विज्ञान अब मस्तिष्क की तरंगों, न्यूरोप्लास्टिसिटी और मानसिक स्वास्थ्य के शोध के माध्यम से उसी दिशा को अलग भाषा में समझने की कोशिश कर रहा है। कई स्टडीज़ यह दिखाती हैं कि ध्यान, प्राणायाम और आत्मचिंतन से तनाव घटता है, मस्तिष्क के कुछ हिस्सों की गतिविधि बदलती है और मानसिक संतुलन बेहतर होता है। अध्यात्म हमें भीतर झाँकने की शक्ति देता है; जब हम सचेत ध्यान में उतरते हैं, तो कभी-कभी ऐसा अनुभव होता है मानो पूरे ब्रह्मांड की यात्रा भीतर ही भीतर हो रही हो।

निष्कर्ष :
तो असली सवाल यह है: वास्तव में बड़ा क्या है — यह अनंत संसार, या तुम्हारी समस्या? ब्रह्मांड तो अनंत है, पर हमारी सीमित बुद्धि, अहं और दुख उसे भी अपनी तुलना में छोटा बना कर देखना चाहते हैं। अध्यात्म धीरे से याद दिलाता है कि असली विशालता सिर्फ बाहर नहीं, हमारे भीतर की चेतना में भी छिपी है; जो ईमानदारी से भीतर उतरता है, वही बाहर के अनंत को बिना डर के, विस्मय और विनम्रता के साथ देख पाता है।

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“आज अपनी किस समस्या को ब्रह्मांड के सामने रखकर, थोड़ा छोटा देखने की कोशिश करोगे?”

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