1. प्रारंभिक भ्रम: योजना बनाना और नियति का खेल
हम जीवन में बहुत कुछ करना चाहते हैं। योजनाएँ बनाते हैं, संकल्प लेते हैं, लेकिन होता वही है जो प्रलब्ध में लिखा है।
मनुष्य स्वयं को स्वतंत्रत समझता है, पर उसकी स्वतंत्रता भी नियति की डोर से बंधी होती है।
मन से ठान लेने के बाद भी, यदि प्रलब्ध चाहेगा तभी रास्ते खुलेंगे।
हम मालिक नहीं हैं—सत्ता किसी और के हाथ में है।
2. कर्म और प्रलब्ध का रहस्य
प्रलब्ध हमारे पिछले कर्मों से बनता है।
जीवन एक नदी की तरह है—आप हाथ-पैर चला सकते हैं, लेकिन धारा जहाँ जाती है, वहीं आप पहुँचते हैं।
आप चाहें या न चाहें, कई बार वही गलतियाँ दोहराते हैं—यह भी प्रलब्ध का ही खेल है।
हर रिश्ता, हर परिस्थिति, हर घटना—आपकी परिपक्वता की सीढ़ी है।
3. सुख-दुख: मन की परछाइयाँ
हम दुख को श्राप और सुख को वरदान मानते हैं, जबकि ये तो मन की स्थितियाँ हैं।
मनुष्य बदल सकता है, लेकिन दिशा प्रलब्ध तय करता है।
जैसे नीम का बीज नीम ही बनेगा, लेकिन वह छाँव देगा या सूख जाएगा—यह आपके कर्म तय करते हैं।
4. आलस्य नहीं, कर्म ही धर्म है
कुछ लोग प्रलब्ध को मानकर आलसी हो जाते हैं।
वे नहीं समझते कि अनाज मिलना प्रलब्ध है, लेकिन हल चलाना भी प्रलब्ध है।
आलस्य करोगे तो भूखे रहोगे।
5. माया और भ्रम का जाल
आपको लगता है कि आप चुन रहे हैं—यही भ्रम है जिसे ऋषि-मुनि ‘माया’ कहते
“हे ब्रह्म, आनंद ही हो, आनंद ही रहे, आनंद ही बहे।”

