भूमिका
मन एक रहस्य है। नज़र नहीं आता, छू नहीं सकते, लेकिन इसका प्रभाव हर पल हमारे जीवन पर पड़ता है। यह कभी हमारा मित्र बनता है, कभी शत्रु। कभी बुद्धि का साथी, तो कभी उसकी चालाकी से उसे ही भ्रमित कर देता है। इस ब्लॉग में हम मन की इसी यात्रा को एक कविता के माध्यम से समझने का प्रयास करेंगे—जहाँ उसकी चंचलता, शक्ति और साधना का सुंदर चित्रण है।
कविता: मन की यात्रा
मन भी क्या अजीब चीज़ है,
ना दिखाई दे, ना छू पाए,
फिर भी इसका अस्तित्व—एक अग्नि, एक आंधी,
जो चाहे तो जीवन को उड़ा ले जाए।
बिना लगाम के दौड़ता है,
मन के घोड़े भटकते रास्ते,
और लगाम पकड़ लो अगर,
तो यही बन जाए सफलता के वास्ते।
शक्ति से नहीं, बुद्धि के चाबुक से,
ये पागल घोड़ा हो जाता है शांत,
पर चतुर है, चालाक है,
कभी बुद्धि को भी बना ले अपना दास।
धैर्य, विवेक और इच्छा-शक्ति के परदे से,
दिन-रात नज़र रखो इस पर,
तभी तो होगा ये साधा,
और शत्रु से बन जाएगा तुम्हारा यार।
🔍 अंतर्दृष्टि
इस कविता में मन को एक घोड़े के रूप में देखा गया है—जो बिना लगाम के दौड़ता है, लेकिन बुद्धि और धैर्य से शांत हो सकता है। यह हमें याद दिलाती है कि सफलता केवल बाहरी संघर्ष से नहीं, बल्कि अपने मन को समझने और साधने से भी आती है। जब मन हमारा साथी बन जाता है, तब जीवन की यात्रा एक आनंदमय उत्सव बन जाती है।
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