आज के समय में जब हर कोई सोशल मीडिया, ऐशो-आराम और पैसों के चक्र में भाग रहा है, एक सवाल मन में उठता है –
क्या यही सब खुशी का असली स्रोत हैं?
सच्चाई यह है कि ये सब अस्थायी हैं। असली शांति और अर्थ हमें तब मिलते हैं, जब हम “प्रकृति” और “उसके नियमों” को समझने लगते हैं।
प्रकृति का नियम – जीवन की धड़कन
हमारा शरीर, दिल की धड़कन, सांसों का स्वतः चलना – क्या यह सब हमारे बस में है?
नहीं, यह सब उस प्रकृति-शक्ति के अधीन है जो हर क्षण सबको संचालित करती है।
यही सच्चा नियम है –
“मैं नहीं, प्रकृति चलाती है। और उसका आधार है वह परमशक्ति, जो सबमें समान रूप से प्रवाहित है।”
जब यह भाव स्थिर होता है, अहंकार अपने आप गलने लगता है।
अहंकार से सेवा की ओर
जब हम कर्म को ‘अपना अधिकार’ मानकर करते हैं, तो कष्ट मिलता है।
पर जब वही कर्म ‘सेवा’ बन जाता है, तो वही जीवन आनंदमय हो उठता है।
असली रास्ता है — अहंकार छोड़ो, सेवा अपनाओ।
दृष्टिकोण बदलो, जिंदगी बदल जाएगी
जीवन का अर्थ किसी बड़ी उपलब्धि में नहीं, बल्कि हर क्षण में छिपा है जब हम वर्तमान में जीते हैं और प्रकृति के नियम से जुड़ते हैं।
जो अपने दृष्टिकोण को बदल देता है, उसकी पूरी जिंदगी बदल जाती है।

