🔱 आध्यात्मिक महिमा: माँ के चरणों में आत्मबोध
माँ स्कंदमाता, माँ दुर्गा का पाँचवाँ स्वरूप हैं। वे भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की जननी हैं और भक्तों को आत्मज्ञान की ओर ले जाती हैं।
- कमलासन पर विराजमान माँ, भक्त के हृदय में कमल की तरह ज्ञान खिलाती हैं।
- चार भुजाओं में कमल और स्कंद—एक हाथ में पुत्र, एक में कमल, एक वरमुद्रा और एक अभयमुद्रा। यह दर्शाता है कि माँ संतान, सौंदर्य, वरदान और सुरक्षा चारों देती हैं।
- सिंहवाहिनी रूप—आध्यात्मिक साहस और निर्भयता का प्रतीक।
- माँ की कृपा से साधक को सहज ध्यान, मौन की गहराई और आत्मा का साक्षात्कार होता है।
“जो माँ स्कंदमाता का ध्यान करता है, वह स्वयं स्कंद की कृपा का पात्र बनता है।”
👪 सांसारिक महिमा: जीवन में सुख, संतान और संतुलन
माँ स्कंदमाता केवल योगियों की आराध्या नहीं, वे गृहस्थों की भी रक्षक हैं। उनके पूजन से जीवन में संतुलन आता है।
- संतान सुख की दात्री—जो दंपत्ति संतान की कामना करते हैं, माँ उनकी गोद भरती हैं।
- मातृत्व का आदर्श—माँ स्वयं अपने पुत्र को गोद में लेकर भक्तों को दर्श देती हैं, यह दर्शाता है कि माँ अपने बच्चों की रक्षा स्वयं करती हैं।
- गृहस्थ जीवन में शांति—माँ की पूजा से परिवार में प्रेम, करुणा और संवाद की ऊर्जा बहती है।
- व्यवसाय और कार्य में सफलता—माँ का वरमुद्रा रूप कर्म में सिद्धि और समृद्धि देता है।
“माँ स्कंदमाता की पूजा से जीवन में न केवल संतान सुख आता है, बल्कि हर कार्य में माँ की कृपा से सफलता मिलती है।”
🌿 पंचमी की साधना: माँ को अर्पित करें यह भाव
- वस्त्र रंग: हरा—शांति और उर्वरता का प्रतीक।
- भोग: केले—संतान और समृद्धि की कामना।
- मंत्र:
- ध्यान श्लोक:
सिंहासना समारूढा स्कंदहस्त समन्विता। शुभदा शुभपद्न्या स्कंदमाता यशस्विनी॥
✨ निष्कर्ष: माँ की गोद में आत्मा और संसार दोनों सुरक्षित
माँ स्कंदमाता की महिमा दो धाराओं में बहती है—एक आत्मा को ब्रह्म की ओर ले जाती है, दूसरी संसार को सुख और संतुलन देती है।
उनकी गोद में बैठा स्कंद केवल देवता नहीं, वह हर भक्त का आत्मबल है। माँ की पूजा एक साधना है—जहाँ हम अपने भीतर के बालक को माँ की गोद में सौंप देते हैं।
आज पंचमी है। माँ की गोद में बैठिए। मौन हो जाइए। संसार और आत्मा दोनों माँ के चरणों में समर्पित कर दीजिए।

