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## माँ शैलपुत्री : शक्ति, शुद्धता और समाज का प्रतीक

### परिचय

नवरात्रि के पहले दिन माँ शैलपुत्री की पूजा से शक्ति साधना की शुरुआत होती है। पर्वतराज हिमालय की कन्या होने के कारण इन्हें “शैलपुत्री” कहा जाता है। यही देवी आगे चलकर पार्वती और सती के रूप में भी पूजी जाती हैं। माँ शैलपुत्री का स्वरूप शांति, संयम, साहस और शक्ति का अद्भुत मिलन है[2][5]।

### आध्यात्मिक प्रभाव

– माँ शैलपुत्री साधना के मूलाधार चक्र की अधिष्ठात्री देवी हैं, जिनकी आराधना से साधक को भीतर शक्ति, स्थिरता और आत्मविश्वास प्राप्त होता है[4][9]।
– यह स्वरूप बताता है कि आध्यात्मिक विकास का पहला कदम है—स्वयं को पहचानना और अपनी शक्ति को जागृत करना।
– इनकी कथा से हमें आत्मसम्मान, तपस्या और मर्यादा की शिक्षा मिलती है। संकट में संयम और अपमान में भी आत्मबल न छोड़ना इनकी सबसे बड़ी सीख है।
– मान्यता है कि माँ की कृपा से सभी प्रकार की मानसिक और आध्यात्मिक बाधाएँ दूर होती हैं, और साधक के जीवन में स्थिरता, शांति और संतुलन आता है[4][5]।

### सामाजिक प्रभाव

– माँ शैलपुत्री महिला सशक्तिकरण की प्रेरणा हैं। उनका पूरा जीवन सम्मान, संघर्ष और आत्मबल के सिद्धांतों से ओत-प्रोत है[2][5]।
– नवरात्रि के समय होने वाली पूजा और सामूहिक गतिविधियाँ समाज को एकजुट करती हैं, सांस्कृतिक पहचान को गहरा करती हैं और सहयोग व मेलजोल बढ़ाती हैं।
– ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में होने वाले मेलों, कलश स्थापना, भजन-कीर्तन और व्रत जैसी सामाजिक परंपराएँ, समाज में एकता का संदेश देती हैं और छोटे व्यापारियों, कारीगरों व अन्य वर्गों के लिए नए अवसर पैदा करती हैं[9]।
– माँ की पूजा से नारी सम्मान, परिवार में सुख-शांति व समाज में सामूहिक सहयोग की भावना को बल मिलता है।

### कथा संक्षेप

माँ शैलपुत्री का जन्म हिमालय राज की पुत्री के रूप में हुआ। वे पूर्वजन्म में सती थीं, जिन्होंने स्वयं सम्मान के लिए योगाग्नि में आहुति दी। उनके त्याग और तप ने उन्हें पुनः हिमालय की कन्या बनाकर इस पृथ्वी पर भेजा। आगे चलकर कठिन तपस्या द्वारा उन्होंने फिर से भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया। उनका हर रूप साहस, बलिदान और सच्ची श्रद्धा का प्रतीक है[2][7]।

### पूजा विधि (संक्षिप्त)

– सूर्योदय से पूर्व स्नान कर घर के पूजा स्थान को शुद्ध करें।
– कलश स्थापना करें और माँ शैलपुत्री की प्रतिमा/चित्र के सामने दीप जलाएं।
– रोली, चावल, फूल, माला, फल, घी-दीपक, गाय के घी से बना प्रसाद अर्पित करें।
– “ॐ शैलपुत्र्यै नमः” मंत्र का जाप करें।
– सफेद मिठाई का भोग लगाएँ और माँ की आरती करें[4]।

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