मां कात्यायनी देवी नवदुर्गा के छठे रूप हैं, जिनकी पूजा नवरात्रि के छठे दिन की जाती है। ऋषि कात्यायन की तपस्या के फलस्वरूप मां दुर्गा ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया, जिससे इन्हें कात्यायनी कहा जाता है। मां का स्वरूप अत्यंत भव्य, सिंह वाहन पर सवार और चार भुजाओं में तलवार, कमल, अभय व वर-मुद्रा से युक्त है।
सांसारिक महिमा : मां कात्यायनी को ‘अमोघ फलदायिनी’ भी कहा जाता है। इनकी पूजा से सांसारिक दुख, भय, रोग, शत्रु आदि का नाश होता है और सुख-समृद्धि, विवाह, संतान, ऐश्वर्य जैसे वरदान सहज रूप से मिलते हैं। विवाह में बाधा या विलंब हो तो विशेष रूप से इनकी पूजा की जाती है। गोपियों ने श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए मां की पूजा की थी।आध्यात्मिक महिमा : मां कात्यायनी साधक के ‘आज्ञा चक्र’ को जागृत करती हैं, जिससे आत्मविश्वास, ज्ञान, साहस और मन की शांति प्राप्त होती है। इनकी कृपा से भक्त धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष – चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति करता है और जीवन के समस्त कष्टों से मुक्ति पाता है।
पूजा विधि और मंत्रमां को पीला, लाल वस्त्र, पुष्प, शहद का भोग, रोली, कुमकुम, अक्षत, हल्दी, दीपक आदि अर्पित करें।सुबह स्नान के बाद साफ कपड़े पहनकर पूजा स्थल की शुद्धि करें।देवी के चित्र/मूर्ति के सामने निम्न मंत्र का जाप करें:“ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥” या “या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥”
पूजा के बाद घी का दीपक जलाकर आरती करें और प्रसाद बाँटें।कथा-संदर्भमां कात्यायनी ने राक्षस महिषासुर का वध कर देवताओं की रक्षा की थी। इनकी कथा, शक्ति और आराधना से प्रेरित, आज भी भक्तों के जीवन में उनकी विशेष कृपा मानी जाती है।

