एक अंतरदृष्टि, एक मौन संवादप्रश्न:जब परमात्मा एक ही है —अचल, अकर्म, निराकार —तो वह स्वयं को इतने सारे अवतारों में क्यों बिखेरता है?क्या वह स्वयं अनुभव करता है?या यह सब प्रकृति की गति है?
प्रश्न:
जब परमात्मा एक ही है —
अचल, अकर्म, निराकार —
तो वह स्वयं को इतने सारे अवतारों में क्यों बिखेरता है?
क्या वह स्वयं अनुभव करता है?
या यह सब प्रकृति की गति है?
🌿 विचार की पहली लहर — अवतार की लीला
कई परंपराएं कहती हैं कि परमात्मा स्वयं अवतार लेता है —
राम, कृष्ण, बुद्ध, यीशु —
जैसे प्रेम स्वयं रूप धारण कर ले।
भक्ति मार्ग में यह एक साक्षात प्रेम है —
जहाँ ईश्वर अपने भक्तों के लिए
स्वयं धरती पर उतर आता है।
🌊 विचार की दूसरी लहर — आधार का दर्शन
आज सुबह एक thought आया —
शायद परमात्मा खुद कुछ नहीं करता।
वह तो बस आधार है —
जिसकी सत्ता में सब कुछ घटित होता है।
- वह स्वयं अलग नहीं होता,
बल्कि उसकी सत्ता में
प्रकृति के नियमों से सब कुछ चलता है। - मनुष्य, पक्षी, कीट, वृक्ष —
सब उसी की छाया में हैं,
पर वह स्वयं कर्म नहीं करता। - जैसे आकाश उड़ता नहीं,
पर उड़ने का स्थान देता है।
❓ तो क्या मैं पहले गलत था?
यह प्रश्न उठना ही जागृति है।
पहले लगा — परमात्मा स्वयं अवतार लेता है।
अब लगता है — वह तो निष्क्रिय आधार है,
और सब कुछ प्रकृति के नियमों से चलता है।
उत्तर:
दोनों सही हैं — दृष्टिकोण के अनुसार।
- भक्ति कहती है — ईश्वर करता है।
- वेदांत कहता है — ईश्वर कुछ नहीं करता,
वह तो बस होने का कारण है।
🌺 माया का रहस्य — करता भी वही है, और कुछ नहीं करता भी वही है
शायद यही माया का रहस्य है —
वह कभी रूप बन जाती है,
कभी रूपों के पीछे छिप जाती है।
वह कभी लीला करती है,
कभी लीला होने का आधार बन जाती है।
🙏 अंत में एक प्रश्न पाठकों के लिए:
क्या परमात्मा वास्तव में कुछ करता है?
या हम सब उसी की सत्ता में प्रकृति के नियमों से बहते हैं?

