bheetar andhkar

भीतर के अंधकार से मुक्ति

पैठी पताल तोरि जमकारे। अहिरावण की भुजा उखाड़े।

भूमिका:
रामायण की कहानियाँ केवल इतिहास नहीं हैं — वे हमारे भीतर चल रही यात्राओं का प्रतीक हैं।
हर पात्र, हर युद्ध, हर विजय — हमारे मन के किसी भाव, किसी संघर्ष, किसी समाधान का रूप है।
आज हम बात करेंगे उस प्रसंग की जब हनुमान जी पाताल लोक में गए और अहिरावण का वध किया।
लेकिन इस बार हम इसे बाहरी नहीं, भीतरी दृष्टि से देखेंगे।

पाताल क्या है?
पाताल लोक को अक्सर धरती के नीचे का अंधकारमय स्थान कहा गया है।
लेकिन अगर हम ध्यान से देखें, तो यह हमारे भीतर का अंधेरा भी हो सकता है —
वो जगह जहाँ हम अपने डर, क्रोध, ईर्ष्या, हीनता, और भ्रम को छिपा कर रखते हैं।
जब जीवन में कोई कठिनाई आती है, और हम खुद से ही छिपने लगते हैं —
तो समझो हम अपने ही पाताल में उतर गए हैं।

अहिरावण कौन है?
अहिरावण रावण का भाई था, जो पाताल लोक का राजा था।
उसने राम और लक्ष्मण को धोखे से बंदी बना लिया था।
आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो —
अहिरावण हमारे भीतर के उस हिस्से का प्रतीक है जो छल, भ्रम और अज्ञान से भरा है।
वो विचार जो हमें कहते हैं:

  • “तुमसे नहीं होगा”
  • “तुम अकेले हो”
  • “तुम्हारा कोई मूल्य नहीं है”
    ये विचार हमारे ‘राम’ (आत्मा) और ‘लक्ष्मण’ (विवेक) को बंदी बना लेते हैं।

हनुमान क्या करते हैं?
हनुमान जी बिना डरे पाताल में उतरते हैं।
वे अहिरावण का वध करते हैं और राम–लक्ष्मण को मुक्त कराते हैं।
यह प्रतीक है उस शक्ति का जो हमारे भीतर भी है —
जब हम अपने डर का सामना करते हैं,
जब हम अपने भीतर के भ्रम को पहचानते हैं,
जब हम सत्य और साहस के साथ खड़े होते हैं —
तब हम अपने ‘हनुमान’ रूप में होते हैं।

संदेश क्या है?

  • हर इंसान के भीतर एक पाताल होता है — जहाँ उसके डर और भ्रम छिपे होते हैं।
  • हर इंसान के भीतर एक अहिरावण होता है — जो उसे खुद से दूर करता है।
  • लेकिन हर इंसान के भीतर एक हनुमान भी होता है — जो उसे मुक्त कर सकता है।

निष्कर्ष:
जब हम अपने भीतर के अंधकार में उतरने का साहस करते हैं,
जब हम अपने ही मन के अहिरावण से लड़ते हैं,
तब हम अपने राम से, अपने सत्य से, अपने प्रकाश से मिलते हैं।
हनुमान की कथा हमें यही सिखाती है —
कि सच्चा वीर वही है जो भीतर के अंधकार से लड़ सके।

Ramana Maharshi: The Path of Self-Inquiry – Manav Jagrutihttps://anandvivek.org/path-of-self-inquiry/

1 thought on “भीतर के अंधकार से मुक्ति”

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