हमारा अस्तित्व या सिर्फ एक प्रोग्रामिंग
इंसान अपने अस्तित्व को समझने की कोशिश करता है, लेकिन उसकी पूरी ज़िंदगी एक प्रोग्रामिंग के पैटर्न पर चलती रहती है।
जो हम “मैं” समझते हैं, वह ज़्यादातर हमारी कंडीशनिंग, संस्कार, परवरिश, संस्कृति, ट्रॉमा और समाज के इनपुट का परिणाम होता है।
1. प्रोग्रामिंग का मतलब क्या है?
प्रोग्रामिंग का मतलब है —
वह सब पैटर्न जो हमने बिना अपनी पसंद के सीख लिए:
- क्या सही है, क्या गलत
- कैसे सोचना है
- कैसे प्रतिक्रिया देनी है
- किस बात से दर्द होता है
- किस बात से खुशी होती है
- किस चीज़ से डर लगता है
- किस बात पर गुस्सा आता है
ये सब हमने चुना नहीं,
ये सब हम पर डाला गया।
इसलिए हमारी पहचान का बड़ा हिस्सा प्रोग्रामिंग से बना होता है।
2. संस्कार का रोल
संस्कार वे दोहराए गए पैटर्न हैं जो बार‑बार रिपीट होकर हमारी प्रकृति बन जाते हैं।
एक बार संस्कार बन गया, तो वह हमारी सोच और व्यवहार को ऑटोमैटिकली चलाता है।
इस स्टेज पर इंसान को लगता है:
- “मैं सोच रहा हूँ”
- “मैं निर्णय ले रहा हूँ”
लेकिन असल में प्रोग्रामिंग ही प्रतिक्रिया दे रही होती है।
3. तो फिर हमारा असली अस्तित्व क्या है?
अगर हम सिर्फ प्रोग्रामिंग होते,
तो हम अपनी प्रोग्रामिंग को देख ही नहीं पाते।
लेकिन हर इंसान के अंदर एक क्षमता होती है:
- अपने विचार को देखने की
- अपनी प्रतिक्रिया को ऑब्ज़र्व करने की
- अपने संस्कार को पहचानने की
- अपने व्यवहार को समझने की
यह क्षमता प्रोग्रामिंग का हिस्सा नहीं है।
यह द्रष्टा का काम है।
द्रष्टा वह लेयर है जो:
- प्रतिक्रिया नहीं करता
- सिर्फ देखता है
- जज नहीं करता
- सिर्फ उपस्थित रहता है
यही हमारा असली अस्तित्व है।
4. प्रोग्रामिंग रास्ता है, अस्तित्व मंज़िल
प्रोग्रामिंग और संस्कार इंसान को एक निश्चित बिंदु तक ले जाते हैं।
लेकिन द्रष्टा की पहचान प्रोग्रामिंग से परे होती है।
जब इंसान अपने विचार को देखना शुरू करता है,
तब वह प्रोग्रामिंग से अलग होता है।
जब वह अपनी प्रतिक्रिया को ऑब्ज़र्व करता है,
तब वह संस्कार से अलग होता है।
यही मानव जागृति का पहला कदम है।
5. नियति का रोल
अगर किसी की नियति में जागरण लिखा है,
तो वह अपनी प्रोग्रामिंग को देखने की क्षमता स्वाभाविक रूप से विकसित करता है।
प्रोग्रामिंग उसे यहाँ तक लाती है।
द्रष्टा उसे आगे ले जाता है।
✅ निष्कर्ष
इंसान दो लेयर में जीता है:
- प्रोग्रामिंग — जो सीखी हुई है
- अस्तित्व (द्रष्टा) — जो जन्मजात है
मानव जागृति का उद्देश्य है:
इंसान को उसकी प्रोग्रामिंग से परे ले जाकर
उसके असली अस्तित्व का दर्शन कराना।
क्या आप जो सोचते हैं, महसूस करते हैं, और चाहते हैं — वो सचमुच आपका है, या किसी प्रोग्रामिंग का हिस्सा है?
upcoming – प्रोग्रामिंग से अलग अपने अस्तित्व की पहचान
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