नवरात्रि के तीसरे दिन मां दुर्गा के तृतीय स्वरूप मां चंद्रघंटा की आराधना की जाती है। उनका स्वरूप साहस, शांति और शक्ति का प्रतीक है। देवी के माथे पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र विराजमान है, जिससे उन्हें यह नाम प्राप्त हुआ। इनकी आराधना का उद्देश्य जीवन में निर्भयता, आंतरिक ऊर्जा और सुरक्षा प्राप्त करना होता है।
सांसारिक दृष्टिकोण से, मां चंद्रघंटा की पूजा से जीवन में शांति, सुख, समृद्धि और सौभाग्य का संचार होता है। विशेष रूप से उनके घंटे की ध्वनि नकारात्मक शक्ति एवं बुरी शक्तियों से रक्षा करती है, जबकि भक्तों को मंगल का संदेश प्राप्त होता है। माता का आशीर्वाद विद्यार्थियों, नौकरीपेशा लोगों और गृहस्थ जीवन के साथ ही सभी के लिए लाभकारी माना जाता है।
आध्यात्मिक स्तर पर, मां चंद्रघंटा की साधना साधक को मणिपुर चक्र पर विशेष ऊर्जा व जागृति देती है, जिससे आत्मबल, साहस और सकारात्मकता बढ़ती है। श्रद्धापूर्वक साधना करने से साधक को आत्मज्ञान, मानसिक संतुलन और मोक्ष की प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है। यह रूप जहां भक्तों के लिए शांतिप्रद है, वहीं संकट के समय रक्षक और संकटमोचन भी है।
मां चंद्रघंटा के ध्यान और मंत्र जाप से मनुष्य के सभी पाप, बाधाएं और शत्रु शक्तियां नष्ट होती हैं। उनकी कृपा से साधक हर प्रकार की नकारात्मकता से मुक्त होकर उज्ज्वल और निर्भय जीवन की ओर अग्रसर होता है।

